'कैरेक्टर रियलिस्टिक लगे, इसके लिए ऋषि कपूर जी ने सेट पर चप्पल तक पहनना त्याग दिया था'- 102 नॉट आउट डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने की सराहना
ऋषि कपूर ने अपने एक्टिंग करियर के दौरान कई सारी बेहतरीन फिल्में दी हैं। एक्टिंग सिर्फ उनका काम ही नहीं बल्कि उनका जुनून था। फिल्म '102 नोट आउट' और 'ऑल इज वेल' में ऋषि का निर्देशन कर चुके डायरेक्टर उमेश शुक्लाने बताया कि आखिरी फिल्म के दौरान उन्होंने सीन को रियलइस्टिक दिखाने के लिए चप्पल पहनना तक छोड़ दी थी। इसके अलावा भास्कर के अमित कर्ण को दिए इंटरव्यू में उन्होंने ऋषि के साथ काम करने के एक्सपीरिएंस को भी शेयर किया है।
मां को खोने पर भी बांधा रखा हौंसला
उनमें कमाल का धैर्य था। तभी कैंसर और ट्रीटमेंट का फेज वह निकाल सके। उनके लिए वो टाइम टफ था। वह इसलिए कि उनकी माता जी का भी देहांत उसी दौरान हुआ था, जब उनका इलाज चल रहा था। मां सबके लिए मां ही होती है। वह खोना कितना मुश्किल होता है। फिर भी उन्होंने वापसी की। दोबारा अपने कर्म के मैदान में उतरे।
ऐसी थी डायरेक्टर से ऋषि की पहली मुलाकात
वैसे हमारी पहली मुलाकात उनके घर पर हुई थी। कृष्णा राज बंगलो में मीटिंग तय हुई थी। मैंने ऑल इज वेल उनको नरेट की थी। वह बहुत स्ट्रेटफारवर्ड इंसान थे। उन्होंने पहली ही मीटिंग में स्क्रिप्ट को हां कह दिया था। फिर हम लोग शिमला गए थे। एक महीने वहां शूट किया था। हम लोगों ने काफी वक्त साथ बिताया था। एक ही होटल में थे हम लोग।
एक फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी दिया मौका
वह फिल्म भले बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली, लेकिन इससे उन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने उस फिल्म की बदौलत मुझे नहीं आंका कि मैं अच्छा या बुरा डायरेक्टर हूं। दोबारा जब मैं 102 नॉट आउट लेकर गया तो उन्होंने बिल्कुल नए सिरे से उस स्क्रिप्ट को सुना।
हर काम की रखते थे खबर
उनको सिर्फ एक्टिंग का ही चार्म नहीं था, बल्कि और भी जो बाकी संबंधित चीजें होती थी कॉस्टयूम, लाइटिंग उन सब के बारे में भी वह बहुत गहन जानकारी रखते थे। मिसाल के तौर पर इस फिल्म में भी बुजुर्ग वाले रोल में उन्हें पिछली फिल्म का अनुभव काम आया और वह इनपुट उन्होंने हमें प्रोवाइड किया। वह पिछली फिल्म कपूर एंड संस थी।
प्रोस्थेटिक मेकअप में लगते थे चार घंटे
उसमें मेकअप में उन्हें चार-साढे चार घंटे लगते थे, मगर उसकी बेसिक जानकारी होने से हमारी फिल्म पर इतना वक्त नहीं लगता था। यहां उनका मेकअप 3 घंटे में हो जाया करता था। उन्होंने काफी बारीकी से उस चीज को समझा था और इनपुट दिए थे। यहां तक कि कॉस्टयूम में भी उन्होंने काफी सजेशन दिए थे कि वह किस तरह के शर्ट पहनेंगे। पूरी फिल्म में उन्होंने, थोड़े स्टार्च वाले शर्ट पहने।
अपने कैरेक्टर पर किया था रिसर्च
वो पहली बार गुजराती शख्स का रोल प्ले कर रहे थे। तो उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने गुजराती दोस्तों और दूर के रिश्तेदारों से भी काफी पूछ कर गुजराती शख्स के लोगों के मैनरिज्म पर होमवर्क और रिसर्च किया। उस उम्र में भी उनका जुनून देखकर हम लोगों को प्रेरणा मिलती थी। वह इन सब चीजों पर तो काफी रिसर्च करते थे, लेकिन जब डायलॉग डिलीवरी और सीन शूट करने की बारी आती थी तो वहां पर वह स्पॉन्टेनियस रहते थे। नेचुरल फ्लोर दिखाने में यकीन रखते थे। मेथड में ज्यादा नहीं घुसते थे।
27 साल बाद बनी थी अमिताभ-ऋषि की जोड़ी
वह और बच्चन साहब 27 सालों के बाद दोबारा इस फिल्म पर काम कर रहे थे। लेकिन लगा ही नहीं कि इतने लंबे समय के अंतराल के बाद दोनों फिर से मिले हैं और काम कर रहे हैं। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों कल के ही मिले हुए हैं और दोबारा से सेट पर काम कर रहे थे। इस तरह की गहरी बॉन्डिंग दोनों के बीच दिख रही थी
छोड़ दियाथाचप्पल पहनना
दोनों ही डायरेक्टर्स एक्टर हैं। हमने जब उन्हें कहा कि हम लोग घर में चप्पल नहीं पहनते तो यकीन मानिए कि उन लोगों ने चप्पल पहनना तक छोड़ दिया शूटिंग के दौरान। भले उनका क्लोज शॉट होता था, मिड शॉट होता था या लॉन्ग शॉट में जब वह आ रहे होते थे। क्लोज शॉट में जरूरत नहीं थी कि वह चप्पल ना पहनें, मगर ऋषि कपूर जी इतने बारीक ऑब्जर्वर थे कि उनका कहना था कि अगर वह बिना चप्पल के ना रहे तो उनकी वॉक में चेंज आ जाएगा, इसलिए उन्होंने पूरे अनुशासित भाव से उस चीज का पालन किया।
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